न हो नसीब में जो, वो मिलता कहाँ है,
दुःख के शाम का सूरज ढलता कहाँ है।
छिल चुके हों जिनके पाँव चलते-चलते,
उनकी किस्मत पर बस चलता कहाँ है।
बचपन से काँधे पर बैठी हो जिम्मेदारी,
उनका दिल किसी पर मचलता कहाँ है।
मोम का जिस्म है वो डरता है आग से,
भट्ठी पर रहने वाला पिघलता कहाँ है।
दर्द की हद से गुजर कर ही चमकता है,
बिना दर्द के कोई दीया; जलता कहाँ है।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




