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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

ग़ज़ल

न हो नसीब में जो, वो मिलता कहाँ है,
दुःख के शाम का सूरज ढलता कहाँ है।

छिल चुके हों जिनके पाँव चलते-चलते,
उनकी किस्मत पर बस चलता कहाँ है।

बचपन से काँधे पर बैठी हो जिम्मेदारी,
उनका दिल किसी पर मचलता कहाँ है।

मोम का जिस्म है वो डरता है आग से,
भट्ठी पर रहने वाला पिघलता कहाँ है।

दर्द की हद से गुजर कर ही चमकता है,
बिना दर्द के कोई दीया; जलता कहाँ है।
🖊️सुभाष कुमार यादव




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

Lekhram Yadav said

बहुत खूबसूरत गजल सुप्रभात सहित सादर नमस्कार सुभाष जी।

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद यादव सर जी । सादर नमस्कार।🙏

श्रेयसी said

लाजवाब रचना सुभाष जी 🙏🙏

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद श्रेयसी जी। 🙏🙏

Updesh Kumar Shakyawar said

बचपन से काँधे पर बैठी हो जिम्मेदारी,......उनका दिल किसी पर मचलता कहाँ है। बेहतरीन विचार प्रस्तुति करने के लिए सुभाष जी को शुभकामनाएं

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद उपदेश सर जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए।🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

बिना दर्द के कोई दिया जलता कहां है।, बहुत सुंदर पंक्ति। खूबसूरत ग़ज़ल। वाह!!

सुभाष कुमार यादव replied

इतनी सुंदर समीक्षा के लिए धन्यवाद समदिल जी।🙏

Shiv Charan Dass said

वाह वाह

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद शिव जी।🙏

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