कशमकश बढ़ती गई जिन्दगी की।
रिश्तों में खटास बढ़ गई गन्दगी की।।
एक झलक पाने को बेकरार दिल।
अजीब हरकते देख रही जिन्दगी की।।
पूछेगा कौन उससे मसला दिल का।
उसमें कसक दिख रही जिन्दगी की।।
होली गई ईद गई मिलने नही आया।
फितूर से दोस्ती बढ़ गई जिन्दगी की।।
गैर के दीवाने और अपनों से तकरार।
हकीकत 'उपदेश' बन गई जिन्दगी की।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद