ये दुनिया इतनी क्यों उडी जा रही हे
ऊंचाइया बेशर्मी की छुये जा रही हे
नफरते दरींदगी वादा खिलाफी भी हे
खुद की बर्बादिया खुद ही किये जा रही हे
अरसे निकल गये इसे न मीला कभी सुकून
शानो-शौकत की जिंदगी बस जीये जा रही हे
हम जानते नहीं नशा किस चीज का हे आपको
खून मजलूमों बेबसों का बस पीये जा रही हे
बर्दास्त की भी हद हे कोई आवाज तो उठाये
क्यों खामखा अमन की जुबा सीये जा रही हे
के बी सोपारीवाला