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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

ऐसा क्या है उसमें-ताज मोहम्मद

ऐसा क्या है उसमें जो उसकी दूरी से इतना बेचैन हो रहा हूं मैं |
उसके बगैर सांसे क्यों ऐसे अपनी रुक-रुक कर ले रहा हूं मैं ||1||

वक्त की हर दहलीज पर उसकी आने की आहट सुनाई देती है |
उसे क्या पता किस कदर टुकड़ों-टुकड़ों में जिंदगी जी रहा हूं मैं ||2||

उसके आने की खबर से मेरे घर की दीवारें महका करती थी |
उन्हें भी एहसास है उसके जाने का रंग उनका उतरता हुआ देख रहा हूं मैं ||3||

उसके संग जो बीता वक्त हैं मैरा, काफी है मेरे जीनें के लिए |
इक-इक करके उसके ख्वाबों को जिन्दगी में जी रहा हूं है मैं ||4||

दिख ना जाये कहीं मेरे जख्मों के निशाँ उसको ऐ साादिक |
उससे मिलने से पहले हर दर्द को सीने के अन्दर सी रहा हूं मैं ||5||


वह याद ना आये सोने के वक्त बिस्तर मे हमको ताज |
देर शाम से इस मयखानें में जमकर जाम पे जाम पी रहा हूं मैं ||6||

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

रीना कुमारी प्रजापत said

वाह! क्या बात है बहुत खुब

ताज मोहम्मद replied

शुक्रिया।

Lekhram Yadav said

वाह ताज साहब वाह क्या खूब लिखा है आपने मजा आ गया।

ताज मोहम्मद replied

शुक्रिया भाई जी।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

हाय यह आशिकी, शायरी, महफ़िल जाम और ना जाने क्या क्या, दर्देदिल कहाँ कहाँ सब यहाँ ताज साहब की महफ़िल में

ताज मोहम्मद replied

हुकुम कीजिए भाई जी सब हाज़िर है। शुक्रिया।

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