उदासी विलक्षण स्वीकार करो तन्हाई में।
जीवन का अधूरेपन पोषित करती सच्चाई में।।
जब कभी भीतर का मौन गहरा जाता है।
प्रश्न अपना उत्तर ख़ुद बना लेती तन्हाई में।।
कहने को शान्ति एक ठहरा हुआ शोर है।
इच्छाएँ अपनी पहचान जाहिर करती तन्हाई में।।
ये अंधेरा नहीं शायद प्रकाश का अभाव है।
जहाँ आत्मा पुरानी परतों को धोती तन्हाई में।।
हर पल, हर साँस, जैसे अर्थ ढूँढ रही होती।
न शिकायत न खोने का डर 'उपदेश' तन्हाई में।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद