उसके हिज़्र में मैं मिटती जा रही हूॅं,
उस कमबख़्त को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि
हिज़्र में उसके क्या से क्या हुए जा रही हूॅं।
भटक रही हूॅं ढूॅंढने को उसे घर,मोहल्लों,गलियों में
भटक रही हूॅं ढूॅंढने को उसे घर, मोहल्लों, गलियों में
मिल रहा है वो मुझे यहाॅं भी नहीं और वहाॅं भी नहीं।।
खेल रहा है आंख मिचौली संग मेरे,
शायद खेलना आंख मिचौली पसंद है उसे
कब तक करेगा ऐसी नदानियाॅं वो,
एक ना एक दिन तो निकल के आयेगा सामने मेरे।
भटक रही हूॅं ढूॅंढने को उसे घर, मोहल्लों, गलियों में
भटक रही हूॅं ढूॅंढने को उसे घर, मोहल्लों, गलियों में
मिल रहा है वो मुझे यहाॅं भी नहीं और वहाॅं भी नहीं।।
उसका और मेरा राब्ता बड़ा ही हसीन है
पर उसे खबर नहीं बेखबर वो है।
उसके लिए मेरा दिल कितना धड़कता है ये उसे
कैसे पता होगा?
मेरी धड़कनों से तो वो वाक़िफ़ ही नहीं है।
भटक रही हूॅं ढूॅंढने को उसे घर, मोहल्लों, गलियों में
भटक रही हूॅं ढूॅंढने को उसे घर, मोहल्लों, गलियों में
मिल रहा है वो मुझे यहाँ भी नहीं और वहाॅं भी नहीं।।
~ रीना कुमारी प्रजापत