बस नज़र खामोश रही, कुछ भी कहा ना तुमने
दिल तो दिया था वफ़ा से, पर निभाया ना तुमने
हाँ लुट गए, हाँ लुट गए — इस दिल के हर इक कोने में
बस तुम रहे, बस ग़म रहे — इस ख़ाली सूने घर में...
काग़ज़ पे जो नाम लिखा था, अब भी महकता है
वो ख़त तुझे भेजा मैंने, दिल हर पल तड़पता है
क़त्ल हुआ है ख़्वाबों का भी, कुछ तूने कहा नहीं
शबाब सी तेरी यादें हैं, पर तू कहीं रहा नहीं
बस नज़र खामोश रही, कुछ भी कहा ना तुमने
दिल तो दिया था वफ़ा से, पर निभाया ना तुमने
हाँ लुट गए, हाँ लुट गए — इस दिल के हर इक कोने में
बस तुम रहे, बस ग़म रहे — इस ख़ाली सूने घर में...
शराब सी तन्हा रातें, गहरे बहुत ये ग़म हैं
शमां भी अब जलती नहीं, और चुप से सारे दम हैं
घर तो वही है लेकिन अब, अपना सा कुछ भी नहीं
तेरी ही यादों के कंधे पे, रोया है ये पलछिन कहीं
ना नींद है, ना चैन है, ना तेरी कोई ख़बर है
इस जगह तू नहीं रहा, पर हर चीज़ तुझसे भर है
बस नज़र खामोश रही, कुछ भी कहा ना तुमने
दिल तो दिया था वफ़ा से, पर निभाया ना तुमने
हाँ लुट गए, हाँ लुट गए — इस दिल के हर इक कोने में
बस तुम रहे, बस ग़म रहे — इस ख़ाली सूने घर में...
बहुत कुछ कह ना पाया मैं, ये दिल भी कमज़ोर था
जो कुछ भी तूने तोड़ा है, वो मेरा आख़िरी शोर था
अब दुआ बस इतनी है — कहीं फिर ना मिलें कभी
तेरी ही राहों में खोकर, हम रह ना जाएं सभी
- ललित दाधीच।।