झकझोरना पड़ेगा ज़मीरे अवाम को
अब कुछ नहीं मिलेगा सियासत को कोस कर
उठा के जंगलों का डर दुआरे ले आये
कहां से भाई कहां भाईचारे ले आये
देखो ये मेरी दुनिया मेरा वतन मेरा घर
वो बाप हूं मैं जिसके बच्चे बिगड़ गये हैं
मंदिर नहीं मियां किसी पनघट का दो पता
सदियों के प्यासे लोग हैं भटकाओ मत हमें
और मत जी तू इन डरों में चल
उठ मेरी जान ख़ंजरों में चल
अब तो हम छीन के लेंगे जो हमारे हक़ हैं
भीक में फेंके हुए आप उठा लो अपने
किसने क्यूं फेंके ये मंज़र कभी सोचा ही नहीं
मेरी नज़रों ने नज़ारों का भरम पाले रखा
तमाम कूचे यहां क़त्लगाह तो हैं ही
नहीं हैं ख़ूनी जो वो सब गवाह तो हैं ही
चली थी पेट से ग़ुर्बत कहां तक आ पहुंची
समाजवाद में अपने अमीर ज़िंदाबाद
तरक़्क़ी हो गयी अच्छा! यहां की ये ख़बर है बस
कभी दिल बैठ जाता है कभी सूरत उतरती है
आप कीजे राजा की मंत्रियों की जयजयकार
हम तो साफ़ कहते हैं ये अवाम ज़िंदाबाद
----भवेश दिलशाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




