जीवन की यात्रा
चले थे कहीं से ,जाना था कहीं पर
मगर मुकाम मिला कुछ और ही
राहों पर मोड़ पर मोड़ मिलते गए ,
कुछ पाते गए ,कुछ खोते गए ।
जब अन्त नज़दीक आया,
खुद को अकेला पाया ।
तब समझ आया
पाया कुछ नहीं ,बस खोया ही खोया है ।
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




