बेशर्म ,कामचोर और मक्कारी,
तीन दलाल और ये भ्रष्टाचारी।
बढ़ रही है भूख दौलत की,
नजरे झुकाए बैठे हैं जिल्लत की।
हाथ रखकर गीता पर,
खाते हैं बड़ी-बड़ी कस्में।
पकड़े गए हैं रंगे हाथ,
अजीबोगरीब हैं इनकी किस्में।
विषधर बैठे फन फैलाए,
जहर भरा है नस-नस में।
अजब गजब है भ्रष्टाचारी,
जरा संभल कर चलना ,भाई।
अब है इनकी शामत, आई।
खुल रही हैं, पोल भ्रष्टाचार की।
याद आती है इन्हें, पल पल जेल की।