"ग़ज़ल"
होती है यूॅं तो आप से हर रोज़ मुलाक़ात!
कह नहीं पाता हूॅं मैं फिर भी दिल की बात!!
आप की यादों में गुज़रता है सारा दिन!
आप ही के सपने देखते कट जाती है रात!!
इन बादलों को जूड़े में क्यूॅं क़ैद किया है?
खोल दो ज़ुल्फ़ें ज़रा हो जाने दो बरसात!!
जिधर भी देखिए थे ग़मों के क़ाफ़िले!
मैं ढूॅंढता ही रह गया ख़ुशियों की बारात!!
कुछ इस क़दर दूरी भी सनम ठीक नहीं है!
मिरी बाहों में आ जाओ बस में नहीं जज़्बात!!
अगर तब्दीली है 'परवेज़' क़ुदरत का क़ानून!
फिर क्यूॅं नहीं बदले अब तक मिरे हालात??
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad