बिछड़कर मुझे तुम से मुद्दत हुई है।
तुम्हें क्या ख़बर कैसी हालत हुई है।
मुझे शायरी की जो चाहत हुई है।
ज़माने को क्यूं इस पे हैरत हुई है।
कहां तुमको मिलने की फुर्सत हुई है।
जो यादों में अब इतनी शिद्दत हुई है।
जो बेचैनियों में भी आराम पाया,
वो कब ख़्वाबे-ग़फ़लत से राहत हुई है।
तुम्हारा ही इक नाम है मेरे दिल में,
तुम्हें याद करने की आदत हुई है।
बिछड़कर मुझे तुम से से मुद्दत हुई है।
तुम्हें क्या ख़बर कैसी हालत हुई है।
----डाॅ फौज़िया नसीम शाद