जानते हो
मैं लिख सकता हूँ प्रेम की कविताएं
पर नहीं लिख पाता
जब घर की चौखट लांघता हूँ
तो देखता हूँ —
बेरोजगारी की पीड़ा
अपराध की गर्जना
और आत्महत्या की चीख
अब बताओ ना
कैसे गढ़ूँ
प्रेम की कोमल कविता
जब कर्तव्य
दीवार बनकर खड़ा हो जाता है?
- प्रतीक झा 'ओप्पी' (उत्तर प्रदेश)