नारी हूँ, पर नारियल नहीं!
अरे भई,
जीवन जीना नहीं, “मैनेज” करना होता है!
और एक औरत से बेहतर
“मैनेजर” कोई हो ही नहीं सकता!
“बचपन – गुड़ियों की शादी से असली शादी तक!”
बचपन में गुड़ियों की शादी करवाई,
बड़ी हुई तो अपनी हो गई…
पर तब तक समझ आ गया था कि –
“डोली में जाना आसान है, पर गृहस्थी संभालना महागुरु का काम!”
शादी के पहले – “तू लक्ष्मी है!”
शादी के बाद – “खर्चा कम किया करो!”
शादी से पहले – “बिटिया, जैसी हो वैसी ही रहना!”
शादी के बाद – “थोड़ा बदलने की कोशिश करो!”
अब बताओ!
बिटिया बदलें या दुनिया बदलें?!
“सुबह की चाय से लेकर रात की चुप्पी तक!”
सुबह उठते ही सबसे पहले किचन में जाओ,
चाय बनाओ, पर सबसे पहले खुद को पिलाओ तो –
“अरे, खुद के लिए पहले?”
और सबसे बाद में पियो तो –
“अरे, अब तक चाय ठंडी हो गई होगी!”
अब बताइए!
गरम चाय पीना भी इज्जत का सवाल बन गया!
बच्चा बोले – “मम्मी, टिफिन में मैगी चाहिए!”
पति बोले – “ऑफिस जाने से पहले पराठा बना दो!”
सास बोले – “खाली पेट पूजा नहीं होती!”
अब भई,
खुद खाओ या पहले घर के भगवानों को खिलाओ?!
“ऑफिस में स्मार्ट, पर घर में बहू नंबर वन!”
ऑफिस जाओ, तो लोग कहें – “वॉव! कितनी इंडिपेंडेंट है!”
घर आओ, तो सास बोले – “कामवाली से घर चलवाना कौन-सी समझदारी है?”
अब बताओ,
ऑफिस में नौकरी करें या घर में गुलामी?!
“शॉपिंग का गणित – तुम्हारी जरूरत, हमारी फिजूलखर्ची!”
पति जी नया मोबाइल लें तो –
“बिजनेस के लिए जरूरी है!”
हम एक साड़ी भी ले लें तो –
“पिछली दिवाली वाली कहां गई?”
अबे भई,
मोबाइल की बैटरी खत्म हो सकती है, पर हमारी अलमारी में जगह नहीं?!
“रिश्तेदारों का रायता – फैलाना है तो जिम्मेदारी हमारी!”
मायके जाओ तो – “अब ससुराल है, बार-बार मत आया करो!”
ससुराल में रहो तो – “मायके से कट मत जाओ!”
अब भई,
जाएँ तो बुरी, ना जाएँ तो बुरी!
तो फिर हम –
रिश्ते निभाएँ या घर बसाएँ?!
“रात की कहानी – जब दुनिया सोती है!”
दिनभर की दौड़भाग के बाद
रात में बिस्तर पर सिर रखा ही था कि –
पति जी बोले – “आजकल तुम मुझसे बात ही नहीं करती!”
अब बताइए!
थकी हुई आत्मा बातें करे या नींद ले?!
“तो आखिर करे क्या?”
खुद के लिए जीए तो – “स्वार्थी!”
सबके लिए जीए तो – “बेचारी!”
प्यार से बोले तो – “दिखावा!”
गुस्से में बोले तो – “अरे, कितनी बदल गई है!”
अब भई,
हम बदलें या बदलने वालों को बदलें?!
“नारी हूँ, पर नारियल नहीं!”
कभी कहेंगे – “संस्कारी बनो!”
कभी कहेंगे – “मॉडर्न बनो!”
अब बताओ,
घर संभालें, ऑफिस चलाएँ,
रिश्ते निभाएँ, बच्चे पालें…
और फिर भी दुनिया कहे –
“तुम करती ही क्या हो?”
अरे भाईसाहब,
हम नारी हैं, कोई नारियल नहीं,
जो बाहर से सख्त और अंदर से मीठे बने रहें!”

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




