'उपदेश' पाकर अपने अन्दर खोजने लगा।
मूलाधार से निकला था चेतन रोकने लगा।।
अंधकार में रोशनी का प्रकोप मिला भारी।
आभारी रूहानियत का कौन सोचने लगा।।
आखिर छोड़ कर जाता हवा अन्दर बाहर।
प्राण वायु है तो इसको कौन टोकने लगा।।
देखा वृक्ष का धरती और सूरज से मिलन।
वही हवा और जल का संयोजन होने लगा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद