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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

नदी और समंदर

समंदर अत्यंत विशाल है
लेकिन वो अपने आप मे
सिमटा हुआ है

चाहे तो समूची धरती को
सींच सकता है और
समूची प्रकृति को
पल्लवित कर सकता है

लेकिन विशालता गहनता का
दर्प उसके जहन में भरा है
इसलिए रोज चाँद को देख
उसे पाने को उफ़नता है
उसे छू नहीं सकता
गुस्से में सबको डुबो देता है
मगर किसी प्यासे की प्यास
नहीं बुझा सकता
पहले उफनता है
और फिर बैठ जाता है

नदी निरंतर बहती रहती है
चाँद की चाँदनी में भी
और अमावस की रात में भी
कड़कड़ाती सर्दी में भी और
चिलचिलाती धूप में भी
सदैव शांत और प्रफ्फुलित

नदी चाँद के लिए बैचैन नहीं होती
क्योंकि वह जानती है
चाँद सितारे सूरज
और समूची प्रकृति ही
उसके आँचल में पलती है

इसलिए वह
निरंतर लोरियां गाते हुए
किसी माँ और बड़ी बहन की तरह
पेड़ पौधे आदमी
जानवर खेत
समूची मानवता की
अबोध बच्चे समझकर
बिना भेदभाव के
हर किसी की
प्यास बुझाती है
किसी मां की तरह
उनपर स्नेह बरसाती है
इसलिए नदी
नदीदी नहीं
दानी है
और समंदर
केवल
खारा पानी है! !




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! क्या सुंदर, गूढ़ और भावपूर्ण अभिव्यक्ति है! प्रकृति के दो रूपों — समंदर और नदी — का ऐसा मानवीकरण बहुत ही संवेदनशीलता और गहराई से किया गया है। हर पंक्ति में दर्शन है, संवेदना है, और एक मौन सीख छिपी है।

Shiv Charan Dass replied

बहुत बहुत धन्यवाद गहन समीक्षा के लिए

Supriya sahu said

बहुत सुंदर रचना नदी और समंदर पर👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Shiv Charan Dass replied

प्रणाम शुक्रिया

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