समंदर अत्यंत विशाल है
लेकिन वो अपने आप मे
सिमटा हुआ है
चाहे तो समूची धरती को
सींच सकता है और
समूची प्रकृति को
पल्लवित कर सकता है
लेकिन विशालता गहनता का
दर्प उसके जहन में भरा है
इसलिए रोज चाँद को देख
उसे पाने को उफ़नता है
उसे छू नहीं सकता
गुस्से में सबको डुबो देता है
मगर किसी प्यासे की प्यास
नहीं बुझा सकता
पहले उफनता है
और फिर बैठ जाता है
नदी निरंतर बहती रहती है
चाँद की चाँदनी में भी
और अमावस की रात में भी
कड़कड़ाती सर्दी में भी और
चिलचिलाती धूप में भी
सदैव शांत और प्रफ्फुलित
नदी चाँद के लिए बैचैन नहीं होती
क्योंकि वह जानती है
चाँद सितारे सूरज
और समूची प्रकृति ही
उसके आँचल में पलती है
इसलिए वह
निरंतर लोरियां गाते हुए
किसी माँ और बड़ी बहन की तरह
पेड़ पौधे आदमी
जानवर खेत
समूची मानवता की
अबोध बच्चे समझकर
बिना भेदभाव के
हर किसी की
प्यास बुझाती है
किसी मां की तरह
उनपर स्नेह बरसाती है
इसलिए नदी
नदीदी नहीं
दानी है
और समंदर
केवल
खारा पानी है! !