मुझे बहुत भाता है
कोई भी उत्पाद
जो होता है देशी,
लुभाते हैं बेहद
घास के मैदानों में
अपनी मौज में चरते
मवेशी..
उनके साथ उड़ते
बतियाते से सफेद
बगुले..
मुझे बहुत भाते हैं..
उनमें होती है कितनी
जीवंतता..
जो जीने का एहसाह कराती
है मुझको..
में टोह लेता फिरता हूं,
पंछियों के कलरव का..
मुझे बहुत भाता है
जुगाली करती गाय को
और
दूध पीते बछड़े को निहारना..
आसमां में जब भी बनता है
इंद्रधनुष, कुदरत की रंगीन
कूंची से निकले रंग
आंखों में बसा लेना
मुझे बहुत भाता है..
इस धरा पर बरसात की बूंदों
का गिरना, और सावन की रुत
में नीम के पेड़ के नीचे उग आए
छोटे नीम नई जगह लगाना..
मुझे बहुत भाता है..
मन में उमड़ते घुमड़ते विचारों
को कविता में ढाल कर
"लिखंतु डॉट कॉम" में भेजना
मुझे बहुत भाता है..