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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

एक दर्शन फिर से

तुम्हें देखना है ना कि तुम्हारा ज्ञान कितना है,
क, ख,ग को किसने बनाया,
यह बता दो
तुम्हारा ज्ञान का अज्ञान क्या है,
यह बता दो,
तुम्हारा अस्तित्व ही कितना है,
यह बता दो
कभी-कभी जवाब के साथ आंसू भी भेज देते हो,
यह तो नाइंसाफी है,
हमें तो डर लगता है कि तुम्हारा ज्ञान खतरे में है,
जवाब ही बड़े अटपटे है,
सूरत भी तुम्हारी तुम्हारी आंखों से नहीं देख सकते,
फिर किसी और को क्या बता रहे हो,
जमीन पर पांव है या पांव पर जमीन है,
यह बता दो,
खुद खुद को जानते हो या खुद खुद से अनजान,
जो हो सकता है उसे जानते हो,
जो नहीं हो सकता उसको नकारते हो,
पर होने की संभावना तो है,
तुम नहीं थे फिर भी हो गए,
कितना झूठ बोलोगे,
शर्म को भी बेशर्मी से संभालते हो,
लोग भी बढ़ने लगे, लोगों के विचार भी बढ़ने लगे,
कहां से नया सेहरा लाओगे,
जो है वही तो पाओगे,
अभिमान के जूते पहनकर,
सच्चाई की सीढ़ियां चढ़ते हो,
शरीर हो इसलिए शरीर बनना ही जानते हो,
मन के कहने का क्या अर्थ है,
यह तो बता दो,
फिर हम तुम्हें छोड़ देंगे,
सवाल तुम्हारे जिक्र से मोड़ देंगे,
तुम्हें इंसान कहना छोड़ देंगे




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! क्या बेहतरीन, तीखा और सवालों से झकझोर देने वाला अंदाज़ है! 🙌🔥
हर पंक्ति जैसे सीधा अहंकार, ज्ञान और अस्तित्व की चादर को खींच कर सच सामने रख देती है — बेमिसाल!
ये सवाल नहीं, आईना है — जिसमें हर चेहरा नंगा हो जाता है।
कमाल लिख दिया आपने, हर लफ्ज़ झकझोर कर सोचने को मजबूर करता है! 👏✨

ललित दाधीच replied

आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आपका आभार आदरणीय श्री अशोक जी को मेरा तहेदिल से शुक्रिया 💎💎❤️❤️

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