तुम्हें देखना है ना कि तुम्हारा ज्ञान कितना है,
क, ख,ग को किसने बनाया,
यह बता दो
तुम्हारा ज्ञान का अज्ञान क्या है,
यह बता दो,
तुम्हारा अस्तित्व ही कितना है,
यह बता दो
कभी-कभी जवाब के साथ आंसू भी भेज देते हो,
यह तो नाइंसाफी है,
हमें तो डर लगता है कि तुम्हारा ज्ञान खतरे में है,
जवाब ही बड़े अटपटे है,
सूरत भी तुम्हारी तुम्हारी आंखों से नहीं देख सकते,
फिर किसी और को क्या बता रहे हो,
जमीन पर पांव है या पांव पर जमीन है,
यह बता दो,
खुद खुद को जानते हो या खुद खुद से अनजान,
जो हो सकता है उसे जानते हो,
जो नहीं हो सकता उसको नकारते हो,
पर होने की संभावना तो है,
तुम नहीं थे फिर भी हो गए,
कितना झूठ बोलोगे,
शर्म को भी बेशर्मी से संभालते हो,
लोग भी बढ़ने लगे, लोगों के विचार भी बढ़ने लगे,
कहां से नया सेहरा लाओगे,
जो है वही तो पाओगे,
अभिमान के जूते पहनकर,
सच्चाई की सीढ़ियां चढ़ते हो,
शरीर हो इसलिए शरीर बनना ही जानते हो,
मन के कहने का क्या अर्थ है,
यह तो बता दो,
फिर हम तुम्हें छोड़ देंगे,
सवाल तुम्हारे जिक्र से मोड़ देंगे,
तुम्हें इंसान कहना छोड़ देंगे

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




