हम दोनों अपनी अपनी पतंग उड़ाते,
आसमान में लड़ गए।
ना कटती बने ना उड़ती बने,
फिर कुछ यूं उलझ गए।
दर्शक जो कह रहे थे,
आखिर वही हुआ।
उसकी तो पतंग छत पर,
सलामत उतर गई।
एक मुद्दत से तलाश में हैं,
आखिर हमारी किधर गई।
उसका वो ढील देना ऐसा फरेब था,
हम उस डोर को अब भी थामे हैं,
जो कब की कट गई।
गर सब कुछ अपने हाथों में हो,
कोई क्यों अपनी पतंग कटाएगा ?
सांसों की डोर पर काबू पाना
गर तुमको आ जाए,
यह तो तय है फिर छगन,
तू खुद खुदा हो जायेगा।
© छगन सिंह जेरठी


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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