प्यार दो प्यार लो जी लो जिन्दगी।
समाज न बदलेगा बदलो जिन्दगी।।
मौके दे रहीं जिन्दगी पहचान कर।
तिल तिल कर सुलग रही जिन्दगी।।
बेवजह के मतभेद गुमान से भरा।
ब्यर्थ में कैसे फ़िसल रही जिन्दगी।।
आईना देखना अब सुहाता ही नही।
बड़ाई सुनने को तरस रही जिन्दगी।।
मानो या न मानो कसक है 'उपदेश'।
प्रेम पाने के लिए तड़प रही जिन्दगी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद