सच ये कि इतना तो रहम तुम मुझ पर किया करते थे देख कर दूर से हमें तुम भीड़ में पहचान लिया करते थे
फिर हम क्यूं हुए तेरी रजा के पाबंद हम तो हर हाल में करके करार अपनी औकात भी जान लिया करते थे
हमसे क्या भूल हुई जो तुम खफा हो बैठे होकर खाक भांप कर दिल का दर्द अपना तुम्हें जान लिया करते थे
जब भी होकर मायूस दरवाजे पे दस्तक हम देते थे आप खोल के दरवाजा ए दिल हमें पहचान लिया करते थे
हुआ अचानक क्या जो तुम खफा हो बैठे हो आप तो अक्सर करके हमें बेकरार वफा मेरी जान लिया करते थे
🙏मेरी स्वरचित गज़ल सुरूर ए वफा🙏