"ग़ज़ल"
जाड़े की नर्म धूप में हो हो चाॅंदनी में तुम!
हर ख़ूबसूरती तिरे दम से है हर दिलकशी में तुम!!
फूलों-सा तिरा रंग है कलियों-सा तिरा रूप!
हर फूल मुझे तुम-सा लगे हर कली में तुम!!
तुम को मुझ से कोई जुदा कभी कर नहीं सकता!
मैं जब से हूॅं ज़िंदा हो मिरी ज़िंदगी में तुम!!
मिरी हर सोच में तुम हो मिरे ख़यालात में तुम!
मिरी हर ग़ज़ल तिरे नाम है मिरी शायरी में तुम!!
तुझे 'परवेज़' ने मोहब्बत का ख़ुदा बना डाला!
मिरा इश्क़ तिरे दम से है मिरी आशिक़ी में तुम!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad