अपनी तो गुफ़्तगू उन्ही टिप्पणियो से होती।
गजल एक माध्यम भर है यों ही लिख देती।।
पढे-लिखे कहलाने को तकल्लुफ बना रहता।
मन तो चाहता बहुत तुम्हे बेदर्दी लिख देती।।
तुम्हारी नजर में आयेगा किस दिन मेरा दर्द।
इलाज होता 'उपदेश' अगर राहत लिख देती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद