वक्त अपने हाथ का जब आइना चमकायेगा
कोई चेहरा गुनगुनाएगा कोई शरमायेगा
इस गलत फहमी में रहना है सरासर ख़ुदकुशी
आदमी के वास्ते यह वक्त ही थम जायेगा
कौन जाने कल यहाँ तस्वीर कैसा रुख करेगी
जुर्म का गहरा अंधेरा आप ही छट जायेगा
जब हकीकत सामने आएगी ये परदा छोड़कर
रक्त सारी धमनियों बर्फ सा जम जायेगा
ये तो कुदरत की इनायत का खरा सा कायदा
सबह में आएगा सूरज शाम में ढल जायेगा
जिन्दगी का कद उठा करता है एक ऊंचाई तक
बाद जिसके तो यहाँ आदमी गिर जायेगा
रूप जब चमकाएगा श्रृंगार की यहाँ बिजलियां
दास क्या एक पत्थर भी गज़ल कह जायेगा II