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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

हमसफ़र... - अशोक कुमार पचौरी

जिंदगी के इस सफर में

हमसफ़र कुछ मिल गए

कुछ खुदा थे कुछ बनाये

कुछ खुदा खुद बन गए

जिंदगी के इस सफर में

हमसफ़र कुछ मिल गए

दिल की गहराइयों तक

जाने वाले थे सभी

कयामतों तक साथ चलना

चाहते थे वो कभी

कुछ जुदा थे कुछ बनाये

कुछ जुदा खुद हो गए

जिंदगी के इस सफर में

हमसफ़र कुछ मिल गए

कुछ खुदा थे कुछ बनाये

कुछ खुदा खुद बन गए

दौड़ता सा याद है मुझको

वो बगीचा आज भी

एक मेरा और उनके पेड़ देते ताजगी

कुछ गिरे थे कुछ गिराए

कुछ पेड़ खुद गिर गए

जिंदगी के इस सफर में

हमसफ़र कुछ मिल गए

कुछ खुदा थे कुछ बनाये

कुछ खुदा खुद बन गए

था उजाला और चारो

साहिलो का शोर था

सूर्य की थी रोशनी या

चाँद की थी चांदनी

कुछ जले थे कुछ जलाये

कुछ दिल खुद जल गए

जिंदगी के इस सफर में

हमसफ़र कुछ मिल गए

कुछ खुदा थे कुछ बनाये

कुछ खुदा खुद बन गए

कइयों की जाने गयी तोह

कइयों के थे दिल गए

उस सफर के हादसे में

जाने कैसे हम बच गए

जब होश आया तो जाना

सब खो गए तुम मिल गए

जिंदगी के इस सफर में

हमसफ़र कुछ मिल गए

कुछ खुदा थे कुछ बनाये

कुछ खुदा खुद बन गए

तुम खुदा थे, हम बनाये

जो खुद बने वो खो गए

जिंदगी के इस सफर में

हमसफ़र कुछ मिल गए

कुछ खुदा थे कुछ बनाये

कुछ खुदा खुद बन गए

Originally published at : https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/ashok-pachaury-hamsafar




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

वन्दना सूद said

कुछ ख़ुदा ख़ुद बन गए 😊👏👏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Aapki najron Ke Samne se yeh gujari aur aapne padhne ke laayak samjha prasannta aur gauarv ki anubhuti huyi.

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