असत्य बोलने पर, चेहरे के हाव भाव मेल नहीं खाते।
सरकारी अनुदान मिलने पर, करोड़ों यूंही डकार जाते।
अंकी, इंकी ,डंकी लाल, में मचा है घमासान।
उनके ही अपने ने, एक-एक को कर दिया कुर्बान।
कुर्सी का खेल था प्यारा, हो रहा था बराबर बंटवारा।
हाय किसकी लग गई, औकात क्या रह गई।
मुंह छिपाने को,भागे फिर रहे हैं।
अपनी ही लगाई आग में,जलते फिर रहे हैं।