वतन पर मरनेवालों को हम झुक कर सलाम करते हैं
घूम जाता है मंज़र आँखों में जब उनका नाम सिमरते हैं
चंदन रूपी लहू से उनके देश प्रेम की ख़ुशबू आती है
उनकी परछाईयों पर चल कर हम उनका एहतराम करते हैं
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
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उनकी परछाईयों पर चल कर हम उनका एहतराम करते हैं