अपनों को भूल जाऊं
यह मेरी आदत नहीं
प्रेरणा को भूल जाऊं
यह सच्ची चाहत नहीं
दिन रात की चैन
खत्म होती गई
बेचैनी यहां तक बढ़ी
मेरी रातें रोती गई
बहुत अच्छा लगा
प्यार में खो जाना
किसी की याद में
कुछ पल सो जाना
तुमसे मिल पाना
ख्वाब होता गया
दूर रहकर तुमसे
बेताब होता गया
मुझे पास देख कर
तुम दूर चली जाती हो
फिर किससे पूछ कर
मेरे सपनों में आती हो
तुम्हें देख कर ही
खिल जाते हैं रंग
दिल को सुकून मिलता है
जब रहते हैं तुम्हारे संग
हम दिल के बदले
दिल ही दिया करते हैं
तुम्हें कहां पता
हम कैसे जिया करते हैं
पहली बार में ही
तुम मुझे भा गई
मुझे पता भी नहीं चला
पर तुम मुझ पर छा गई
तुम्हारे यादों के सहारे
रात को सो जाता हूं
दिन में तो यो ही
तुम्हारी यादों में खो जाता हूं
बहुत दर्द छिपा है
तुम्हारी बातों में
अब नींद नही आती
इन अंधेरी रातों में
दिल के जख्म ने
मुझे मारा है
मुझे पता नहीं
कहा मेरा किनारा है