अपने गरुर में बिताए वो दिन, वो रात भूल गयी वो,
अब उन में पहले जैसा जज्बात नही रहा,
होने को तो हो जाती है बात उनसे,
उनकी बातों में पहेली जैसी बात नहीं रहीं,
लेकिन मेरी अग्नि परीक्षा निरंतर चलती रहती है
----धर्म नाथ चौबे 'मधुकर'
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लेकिन मेरी अग्नि परीक्षा निरंतर चलती रहती है
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