क्यूं करुणा कलित स्वरो मे ,अब विकल राग चुप रहते हैं l
अंतरमन की पीड़ा तन मे , या अश्रु कुछ-कुछ कहते हैं l
चुप रहने वाले से पूछो , वो खुद से कितना कहते हैं l
जो चोट तुम्हारे खातिर थी , वो भी वो खुद पे सहते हैं l
क्यूं करुणा कलित......
तन्हाई किसको प्यारी है ,भाता किसको वो मिलन नहीं l
शब्दों को निज में साध-साध ,बंध जाता ऐसे मौन कहीं l
उलझे रहते जब भीतर हम ,नयना सब भेद खोल जाते l
चुपके- चुपके से मीठे स्वर ,सहसा फिर गीत बोल जाते l
क्यूं करुणा कलित ......
तप तो ही था वो क्या कम था ,आँखों से घुल जो समाया था।
एक- एक शब्दो में साध -साध मैने भी जिसको गाया था l
बाहर की धारा बंद हुई ,सहसा एक राधा फूट पड़ी l
मन की चतुराई विफल भई ,स्वर -स्वर से मेरे धार बही l
क्यूं करुणा कलित .....
क्या स्वार्थ था इतना कहकर ,या कुछ अनुचित सा तुम सुनकर l
इतना कह कर या चुप रहकर ,.इतने सुन्दर पावन तप को l
कुछ भावो में ही बाँधोगे ,या मुक्त पूर्णता कहदोगे l
स्वा से ऊपर जो भाव करे ,मानव जीवन साकार करे l
बह जाने दो मुझको उसमे ,बस इतना हम भी कहते हैं l
एक ज्वार दबाये सीन में , तुम बोलो हम बस सुनते हैं l
क्यूं करुणा...