अपने ही भीतर फिरता हूं, कि खुद से मुलाकात हो
शोर-ओ-ग़ुल की महफ़िल में, खामोशी से बात हो..।
मेरे हालातों का, कोई अफसोस न करे तो बेहतर..
शायद उस खुदा की ही दी हुई, ये कोई सौगात हो..।
हर एक दिशा अब सुलगती हुई, लगती है हमको..
कुछ दिन मेरी रूह·ए·ज़मीं पर, बेइंतहा बरसात हो..।
मयखानों के भी हैं कुछ उसूल, कोई माने कि न माने..
बहकने तक न साकी को, हाथ रोकने की हिदायात हो..।
कि उस शब·ए·मुलाकात के इल्ज़ाम भी है, आफ़रीन भी..
कभी कहते हैं वो दिन न आए, कभी कहते हैं फिर वो रात हो..।
पवन कुमार "क्षितिज"


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







