कापीराइट गजल
अन्जाने में हम उन से यह सौदा इक कर बैठे
दिल के बदले में उनको हम दिल अपना दे बैठे
अन्जाने में जब उसने मुझे अपने पास बुलाया
एक नजर में हम उनसे सौदा दिल का कर बैठे
देकर उन को चांद सितारे जब हम घर पर आए
प्यार की लौ से हम रौशन घर अपना कर बैठे
शाम हुई तो यादें उनकी कहर ढ़ा गई दिल पर
यादों की इस नैया में हम रात सफर कर बैठे
सौंप दिया ये दिल उन को अब आगे मर्जी उनकी
उम्र भर वो साथ निभाए या अपने घर में बैठे
जो होना था हो गया यादव तू अब क्यूं घबराए
ऐसा ना हो आज कहीं तू दिल छोटा कर बैठे
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है