कभी कभी ख़यालों में
डूबे रहते है ख्याबों में
फ़िसलती उम्मीदों की आँखों में
थामे रहते है किनारों की आरजू में
चंचल हवा के तरानो में
ऊँचे अंबर पर मडराते बादलो की बाहो में
उडते पंछी की पंखो के सहारे में
थामे रहते है जज़्बात की अंगड़ाई में
जग में फैली चिंगारी की जलन में
दीपक की भांति ज्योति की पनाह में
भेद अंधेरो को उजालो की तलाश में
थामे रहते है सूरज की उजली किरणों में
कहाँ से आएं अनजान सफ़र में
मुमकिन मंजिले पाने की फिराक में
साहस की डगर से संघर्ष की लड़त में
थामे रहते है नेक इरादों को सजाकर चलने में………