वक्त रेत की तरह हाथों से जैसे फिसल रहा
रूक जा वक्त थोड़ा अब तो तू ठहर जा।
थोड़ी देर थोड़े पहर ही ठहर जा
इतनी जल्दी क्या हैं तूझे क्यो तू भागता जा रहा
क्यो नहीं सुन रहा किसी की क्यो अपनी ही चलाता जा रहा।
ना जाने कितने ही किस्से कितने लोग तेरे काल में समा गए
जो कभी मेरे साथ थे तेरे कारण मैंने वे गंवा दिये।
याद आता है जब भी हमें अपनो के साथ वाला वक्त
ना जाने कितनों को रूला जाता हैं वो वक्त।
कर थोड़ा रहम इतना भी सितम अच्छा नहीं
तू जानता है तेरे हाथ में है सबकुछ पर इतना भी घमंड अच्छा नहीं
इतना भी घमंड अच्छा नहीं।
-राशिका


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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