कापीराइट गीत
आसां नहीं होता यूं दिल तोड़ के जाना
बरसों की मोहब्बत को यूं छोड़ के जाना
रिश्तों में जब कहीं होती नहीं मिठास
बहता है गम का दरिया उन के आसपास
मुमकिन है यहां ऐसे मुँह मोड़ के जाना
बरसों की मोहब्बत ..............
मेरा दर्द बांट ले जो अब ऐसा नहीं कोई
लहरों में हम घिरे, साहिल नहीं है कोई
मुश्किल है तूफां में अब तैर के जाना
बरसों की मोहब्बत ..............
ये खामोश हैं सारे तमाशा देखने वाले
मेरी बरबादियों का तमाशा देखने वाले
मुमकिन है कहां ऐसे रिश्तों को निभाना
बरसों की मोहब्बत ..............
बर्बादियों की रेखा यूं खींची नहीं जाती
ये मजबूरियां किसी की देखी नहीं जाती
मुश्किल है अब यहां फिर लौट के आना
बरसों की मोहब्बत .................
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है