कई बरस बीत गये चैन की नींद सोये,
आज चैन से सोना चाहती हूॅं।
अब तुम आ गये हो तो
कुछ पल के लिए सुकून से जीना चाहती हूॅं।।
कई बरसों से तन्हाईयाॅं खाये जा रही थी मुझे,
आज साथ तेरे रहना चाहती हूॅं।
अब तुम आ गये हो तो
कुछ पल के लिए बाॅंहों में तेरी खोना चाहती हूॅं।।
कई बरस बीत गये चेहरे पर उदासी छाई रहती है,
आज मुस्कुराना मैं चाहती हूॅं।
अब तुम आ गये हो तो
कुछ पल के लिए तुम्हारे साथ हॅंसना चाहती हूॅं।।
कई बरस बीत गये डर - डर के जीते हुए,
आज डर को भगाकर जीना चाहती हूॅं।
अब तुम आ गये हो तो
कुछ पल के लिए बिना डर के बेफ़िक्र रहना
चाहती हूॅं।।
कई बरस बीत गये रोते-रोते,
आज आंसुओं को पोंछना चाहती हूॅं।
अब तुम आ गये हो तो
कुछ पल के लिए खुश रहना चाहती हूॅं।।
"रीना कुमारी प्रजापत"