तृष्णा कभी जीर्ण नहीं होती
उम्र का एक पड़ाव ऐसा
जहाँ उम्र हर साल नहीं,हर दिन नहीं ,हर पल बढ़ रही होती है
बाल पक जाते हैं ,दाँत गिर जाते हैं
आँख कान के पर्दे कमज़ोर हो जाते हैं
किन्तु एक तृष्णा है जो जीर्ण(बूढ़ी) नहीं होती
काम,क्रोध,मान सम्मान,अहम् का भाव क्षीण नहीं होता..
जो समय हृदय की बँधी गाँठे खोलने का है
रूठों को मनाने का है
क्षमा देने और क्षमा लेने का है
सबकी झोलियाँ दुआओं से भरने का है
पर तृष्णा है जो नयी नयी इच्छाओं को जन्म देती रहती है
पता नहीं क्यों ?
हम वक्त के साथ न चल पाते हैं और न ही स्वयम् को बदल पाते हैं ..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




