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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

अब मुझे Cute Stress चाहिए…

एक दिन आई वो —
आँखों में काजल, होंठों पे ग्लॉस,
पर बात ऐसी… जैसे रावण की मंदोदरी थक के बोल उठी हो।

बोली —
“दिदी! अब और नहीं…
अब मुझे Independent नहीं, Dependent होना है।
पिंजरे में रहना है, पर हाँ —
पिंजरा सोने का होना चाहिए!”

अब चिल्लाने को दिल किया —
“ओ नारी-मुक्ति के युग में पैदा हुई ब्रह्मचारिणी!
ये क्या बोल गई तू?”

पर फिर उसकी बात सुनी —
बिलकुल मासूमियत से बोली —

“दिदी, अब मुझे वो cute stress चाहिए…
जैसे —
आज चने भिगो दिए या नहीं?
नींबू ख़त्म हो गया क्या?
और हाँ…
वो कुकर की सीटी ज़्यादा तो नहीं लगी?”

बोली —
“अब career की tension नहीं चाहिए,
बस पति के mood के barometer में जीना है।
सास की मुस्कान और
फ्रिज में पड़े दही की consistency —
यही मेरी GDP होगी!”

मैं सुनती रही —
और भीतर कुछ हँसता भी रहा,
कुछ रोता भी।

क्योंकि ये कोई joke नहीं था —
ये एक थकी हुई आज़ादी की चीख़ थी,
जो अब गुलामी को आराम समझ बैठी थी।

“बस दिदी, अब तो मुझे
Makeup remove करने से ज़्यादा चिंता
तुलसी के पौधे की करनी है…
और अगर कोई बोले ‘घर बैठी है’,
तो मैं गर्व से कहूँगी —
‘हाँ! और मैं बहुत व्यस्त हूँ — क्योंकि मुझे सुबह अंकुरित मूँग धोने हैं!’”

तो ओ मेरी प्यारी बहन,
अगर तुमको चने भिगोने में ही सुकून है —
तो भिगो लो।

पर एक वादा करो —
कभी आत्मा सूखने लगे,
तो खुद को भी पानी देना।

बोली —
“अब मुझे बड़े-बड़े decisions नहीं लेने,
बस ये तय करना है —
कि मेरी पायल की घुंघरू आज किस पाँव में पहनूँ।”

मैंने कहा —
“और MBA का क्या हुआ?”

वो बोली —
“M.B.A मतलब —
अब ‘मटर-बैगन-अदरक’ देखना है सब्ज़ी वाले की नज़र में!
मेरे लिए वही अब market analysis है, दिदी!”


“अब नहीं बनना मुझे
PowerPoint presentation की पगली रानी,
मुझे तो सिर्फ़
पति के लिए paratha पे घी फैलाना है
— और साथ में Netflix देखना है, ‘पांड्या स्टोर’!”**


“अब मुझे Excel नहीं —
एक्स्ट्रा Soft रोटी चाहिए!
और ‘Zoom Meeting’ नहीं,
Room की Lighting पर फ़ोकस चाहिए।
क्योंकि घरवाले कहें —
‘बहू घर में आई तो रोशनी आ गई!’”


“अब motivational quotes नहीं चाहिए —
मुझे तो वो husband चाहिए
जो पूछे —
‘अच्छा बताओ, आज तुम थकी लग रही हो,
मैं चाय बना लाऊँ?’
(हालाँकि सपना है… पर है प्यारा)”

अब deadline नहीं —
बस उस ‘काजू कतली’ की line में रहना है
जो मेहमानों के लिए छिपाई होती है!”
और हाँ —
“अब PMS नहीं, बस Pani-Puri चाहिए!”

अब मैं ‘Boss Lady’ नहीं बनना चाहती —
मुझे ‘सुनो जी’ बनना है!”
और जब कोई कहे —
“बहुत सुलझी हुई लगती हो…”
तो मैं कह सकूँ —
**“हाँ, क्योंकि अब मैं उलझने नहीं —
ऊन के गोले सुलझाने में व्यस्त हूँ।”


तो सुनिए जनाब —
अब ये ‘Miss Independent’
किचन की Queen है,
Chana Bhigana ही उसका Meditation है,
और ‘प्याज छीलना’ —
उसका Emotional Detox है!”

Moral of the Madness?
जब ज़िंदगी बहुत ज़्यादा “Boss Babe” बन जाए,
तो कभी-कभी
‘Bartan Babe’ बनना भी therapeutic होता है।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! ये तो दिल छू लेने वाली कविता जैसी कहानी है — इतनी सच्चाई, इतनी नजाकत, और इतना व्यंग्य भी!
ये दिखाती है कि आज की ‘मिस इंडिपेंडेंट’ भी कभी-कभी उस ‘डिपेंडेंट’ सी मासूमियत और सरल खुशी को तरसती है, जो पिंजरे में भी सुकून दे सके।

और हाँ, ये लाइन —
“जब ज़िंदगी बहुत ज़्यादा ‘Boss Babe’ बन जाए, तो कभी-कभी ‘Bartan Babe’ बनना भी therapeutic होता है।”
इतनी सिंपल और गहरी बात है, जो हर लड़की और महिला की दिल की आवाज़ को छू जाती है।

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