मैं यहाँ से गुजरा
यहाँ भी तुम
मैं वहां से निकला
वहां भी तुम
मैं जहां गया
बस तुम ही तुम
इस पार भी तुम
उस पार भी तुम
बारिश की बहती
धार में तुम
मेरे दिल के
दरबार में तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
सोना चाहूँ
हर स्वप्न में तुम
कुछ काम करूँ
हर यत्न में तुम
चलता हूँ तो
मेरे साथ हो तुम
लगता है कोई
बरसात हो तुम
सूरज की जैसे रोशनी
और चाँद की हो चांदनी तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
हर अक्स में तुम
हर शख्स में तुम
मेरी जुबां से निकले
लफ्ज़ में तुम
मेरी चाहत में
हर आहट में
हर आस में तुम
हर सांस में तुम
मेरी दुआ में तुम
मेरी दवा में तुम
इस बहती हुई
हवा में तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
हर नज्म में तुम
हर नब्ज में तुम
हर रोम में तुम
हर व्योम में तुम
जो जागूँ सुबह
तस्वीर में तुम
लगता है अब
तकदीर में तुम
मेरी नौका की
मझदार हो तुम
सावन की पहली
फुहार हो तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
कहीं पायल जो बजे
झंकार में तुम
खनके चूड़ी
खनकार में तुम
मेरी जीत में तुम
मेरी हार में तुम
मेरी यादों में
मेरे वादों में
जो करू वार
हर वार में तुम
मेरी नफरत और
मेरे प्यार में तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
कोयल की हर एक
कूक मैं तुम
मेरी प्यास और
मेरी भूख में तुम
इंकार में, इकरार में और
प्यार भरी टकरार में तुम
गर मैं हूँ मैं
परछाई हो तुम
मेरे जीवन की
इकाई हो तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
जब हँस दूँ मैं
यूँ ही कभी
मेरी हंसी में तुम
मेरी खुसी में तुम
गर रो जाऊं
तन्हापन में
पलकों पर सजे
मोती में तुम
नदिया की कल-कल में तुम
फूलों की झिल-मिल में तुम
कोई ख्वाब बुनू तो कैसे बुनू
पल पल रहती मेरे दिल में तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
नैनों की टकरार में और
पलकों के काजल में तुम
तुम धुप में हो
तुम छाँव में हो
जो छाये घटा
बादल में तुम
मेरी नजर में
मेरी बसर में
सजदा जो करूँ
सजदे में तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
जो पछताऊं तो
काश में तुम
धरती अंबर
आकाश में तुम
ऊंचे ऊंचे पर्वत पर तुम
गहरे गहरे सागर में तुम
आयाम में तुम
व्यायाम में तुम
सुबह दोपहर और
शाम में तुम
जो करूँ नशा
हर नशे में तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
हर दिन में तुम
हर रात में तुम
सर्दी गर्मी
बरसात में तुम
नजरों से बने
प्रतिबिम्ब में तुम
जल अग्नि और हो
हिम में तुम
मेरी आन में तुम
मेरी बान में तुम
घटती बढ़ती मेरी
शान में तुम
मेरे पहले भी तुम
मेरे बाद भी तुम
मेरे मन में बने
मंदिर में तुम
जो बजे शंख
हर नाद में तुम
अब तुम ही कहो
मैं जाऊं कहाँ?
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