वक्त तो गुज़रे लेकिन गुज़ारा ना हुआ,
किसी के हम थे लेकिन वो हमारा ना हुआ,
चाहत में नजरें थी पर नज़ारा ना हुआ,
कैसा दिल है जिसमें दर्द दुबारा ना हुआ,
कागज पर गिरे आंसू कैसे लिखें,
किसी की आंखों में सहारा ना हुआ,
आंखों पर कर्ज है लेकिन आंसू दिखें नहीं,
पलकों पर तन्हा थे पर कमबख्त,
पलकों से इशारा दुबारा ना हुआ।।
- ललित दाधीच।।