अब हार की आदत हो गई है,
हर कोशिश जो नाकामयाब हुई है।
हर तमन्ना की तरह ये तमन्ना भी आज,
देखते - देखते पल भर में राख हुई है।
उम्मीद हद से ज़्यादा लगा ली थी,
वजह यही है जो आज भी हार मिली है।
सोच रही थी आज नया आग़ाज़ होगा,
पर आज भी वही पुरानी बात हुई है।
राह तकती रही दहलीज़ पर बैठे पूरे दिन,
और उसी के इंतज़ार में दिन से रात हुई है।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐