आओ मिलकर गायें हम
आजादी के गीत यहां
अनवरत गूंजती रहेगी, गूंज उस तलवार की
संतावन में जो चमकी,बरछी ढाल कटार की लक्ष्मी बाई ने गोरों को, बरसों धूल चटाई थी
झांसी की अरमान के खातिर, अपनी जान गंवाई थी
तात्या, मंगल चले गए
छोड़ समय को जीत यहां...….
चढ़े सूली पर खुशी खुशी, आजादी के परवाने
फांसी काला पानी इनको,लगते जैसे मयखाने
पीठ दिखाना दुश्मनों को,इनको नहीं गंवारा था
बच्चे बूढ़े और जवां में, इंकलाब का नारा था
दिखा सीखाकर चले गए ये
बलिदानों की रीत यहां.….…..
खुदीराम,आजाद के,रग रग में भूचाल थे
नेताजी और भगत के आगे,ललमुंहे कंगाल थे
बंदूकों और तोप के आगे, सत्याग्रह के ढाल थे
टूट गये सन् सैंतालीस तक,जितने गहरे चाल थे
दसों दिशाओं में गूंजे
प्रीत के संगीत यहां.......
नींद गंवा कर वो अपनी, चैन हमें दिलाया है
छलनी हो गये छाती पर, कभी न पीठ दिखाया है
सीमा पर तैयार शेरों ने,अपना करिश्मा दिखाया है
कहर बाकी थी जो इकहत्तर में, करगिल में दिखाया है
फूलता रहे फलता रहे
हम वतन की नीत यहां........
आओ मिलकर.…... आजादी के गीत....…..
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