आइना देखकर वो मुस्कुराते हैं हलके हलके
नित नए नगमे वो गुनगुनाते हैं हलके हलके
बेखुदी सी बढ़ रही है सारे शहर में किसलिए
अजनबी को देखके शरमाते हैं हलके हलके
भटकते हैं बेताब भौरें कलियों की तलाश में
तितलियों के दल अब आते हैं हलके हलके
पल पल बढ़ती जाती उनके दिल की बेकली
राज बताने ये लब खुल जाते हैं हलके हलके
दास कलम गर हाथ में है दर्द भी राहत बनेगा
कुछ नगमें जहन में बुन जाते हैं हलके हलके