"ग़ज़ल"
वा'दा रहा न याद बे-वफ़ा यार को!
मैं क्या जवाब दूॅं नज़र-ए-इंतिज़ार को??
ग़ुर्बत की ये सज़ा क्या वाजिब है यारों?
ठुकरा के चल दे कोई किसी के प्यार को!!
मुस्कुरा के देख लेते जो इक बार वो मुझे!
क़रार मिल जाता दिल-ए-बे-क़रार को!!
उस के बिना बहार भी ख़िज़ा से है बद्तर!
जी चाहता है आग लगा दूॅं बहार को!!
इस बे-दर्दी से भी 'परवेज़' कोई न तोड़े!
हो जिस के दिल में प्यार उस के ए'तिबार को!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad