किसी ने जबान की कीमत मांगी होती तो धरती पर वो भी स्वीकार था। क्योंकि तर्क और धर्म हमेशा सटीकता और सहजता से मिल ही जाते हैं , लेकिन यह बात एक मूर्ख नेता को कैसे समझाए। भाषा की नींव सरलता, सहजता, सटीकता और सुंदरता पर टिकी हुई है। हमारी राजभाषा हिंदी इस वक्तव्य से मेल खाती है। राष्ट्रीय भाषा का इसलिए नहीं दे पाया क्योंकि हमारी भाषा को कभी अपने देश और देश के लोगों से वो सम्मान प्राप्त ही नहीं हुआ। कितने वर्षों से हिंदी ने हमें देन की भावना से दिया है। इसकी सबसे बड़ी देन यह है कि यह जैसे विचारों सोचकर बोलते हैं हम , वैसे ही इसकी लिपि में लिख सकते हैं। ऐसी सटीकता कहीं मिले तो बताइए। लेकिन हमारे राष्ट्रीय प्रतीक तो केवल प्रतीक ही रह गए हैं। अब तो शायद प्रतीत होना भी बंद हो गए। क्योंकि हम देश की संस्कृति , देश की भाषाओ, देश के प्राकृतिक वातावरण और सामाजिक जीवन को सम्मान कहां देते हैं। हमें ना तो अपने देश की उपलब्धियाँ स्वीकार है, ना ही अपने देश की खामियाँ स्वीकार है। हमारे देश के लोग अपने घर, अपने देश को गंदा और बुरा वातावरण बनाते जा रहे हैं, यह देश को स्वीकार नहीं। एक मूढ़ नेता भाषा को नहीं, देश की नागरिकता पर सवाल खड़ा कर रहा है। देश और उसके लोग यहां भी चुप हैं, बाहर के शौकीन ज्यादा हैं यहां। भीतर चाहे, कूड़ा जमा रहे।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




