अब तो इस बात का, सलीका आए मुझको..
जान लूं, गर दुनिया से धोखा आए मुझको..।
रूह मेरी परख़ रही है, दुनिया के उसूलों को..
सुकूँ का कहीं से, कोई झोंका आए मुझको..।
हर कदम पर हमको, बेवफ़ाई के सबक मिले..
फिर कहने से कैसे, कोई वफ़ा आए मुझको..।
मुहब्बत की हाट पर मेरी, कुछ गाहकी न थी..
दीवाने लोग दुकान समझ, बढ़ा आए मुझको..।
तर्के–ताल्लुक़ से, उनके चेहरे पर कुछ शिकन न थी..।
दिल रखने को लोग, कुछ और ही बता आए मुझको..।
पवन कुमार "क्षितिज"