कापीराइट गजल
जब मैं जिन्दगी से उलझ जाता हूं
कुछ देर अन्धेरों में भटक जाता हूं
जिस मोङ पे मजबूरी ले आती है
उस मोङ पर कहां लिख पाता हूं
तुम्हें लगता है मैं रोज लिखता हूं
वक्त मिलता है तो लिख पाता हूं
जिन्दगी में बहुत ये मजबूरियां हैं
मजबूरियों में कहां लिख पाता हूं
यूं तो यादव डिमांड पे लिखते हैं
पर यूं रोज कहां मैं लिख पाता हूं
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है