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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कहां लिख पाता हूं

कापीराइट गजल


जब मैं जिन्दगी से उलझ जाता हूं
कुछ देर अन्धेरों में भटक जाता हूं

जिस मोङ पे मजबूरी ले आती है
उस मोङ पर कहां लिख पाता हूं

तुम्हें लगता है मैं रोज लिखता हूं
वक्त मिलता है तो लिख पाता हूं

जिन्दगी में बहुत ये मजबूरियां हैं
मजबूरियों में कहां लिख पाता हूं

यूं तो यादव डिमांड पे लिखते हैं
पर यूं रोज कहां मैं लिख पाता हूं
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

Supriya sahu said

वाह, वाह...। क्या खूब लिखे हो सर जी, वैसे सिर्फ डिमांड पर मत लिखिए, हर रोज लिखिए, आपको सादर प्रणाम सर जी 🙏🙏।

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, आपकी खूबसूरत टिप्पणी से मुझे बङा सुकून मिला, आपको सादर नमस्कार

श्रेयसी said

किसी भी मोड़ पर मजबूरी ले जाए बस लिखते रहिए खुद हीं मजबूरी चली जाएगी क्योंकि हमलोगों को इंतज़ार रहता है आपकी रचनाओं का । सादर प्रणाम लेखराम भैया 🙏🙏 और जहां आपने लिखा है कि मैं नहीं समझा वहां मैंने आपकी तारीफ हीं की थी हो सके तो फिर से पढ़ लिजीएगा।

Lekhram Yadav replied

आमीन, जैसा आप चाहें वैसा ही हो, आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं सादर नमस्कार

वन्दना सूद said

बहुत खूब लिखा sir 👏👏👌👌लेकिन आपको हमें रोज़ पढ़ना पसंद है इसलिए आपको प्रेरणा मिलती रहे और हमें आपकी गज़ल पढ़ने का मौक़ा मिलता रहे 😊

Lekhram Yadav replied

आदरणीय वन्दना जी, आपकी शानदार प्रतिक्रिया मुझे रोज लिखने के लिए अवश्य ही प्रेरित करेगी ऐसी मैं आशा करता हूं, आप को सादर नमस्कार।

Shiv Charan Dass said

लिखना नहीं अपितु लिख पाना मज़बूरी है सहज़ सरस रचना I

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद सर

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