हम सोचते है,
धन संपदा से हम सबकुछ पा सकते है l
हम सोचते है,
सत्ता से हम सबको काबू में रख सकते है l
हम सोचते है,
दान-धर्म से हम पुण्यात्मा बन सकते है l
हम सोचते है,
ग्रन्थ-मंत्रो से हम भगवान की आँखों में धूल झोंक सकते है l
यह भ्रम हमे दूर दूर तक भटकाता है
जो है पास उसे दूर दूर ले जाता है
मनुष्य का सामर्थ्य इतना नहीं
वह कुछ निर्माण करे
जो लिया यही से लिया
जो दिया यही से दिया
यह वृथा अहंकार
हमे नरक की ओर ले जाता है
यह वृथा अभिमान
हमे मृत्यु की खाई में ढकेल देता है
कभी अमृत का पता नहीं चलता
तू तो स्वामी
चराचर का पिता
अमृतदायी
तेरे स्मरणमात्र से
हे भगवंत...
अमृत झरने लगता है
रोम रोम आनंद से भर जाता है l
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




