
सुमित्रानंदन पंत : प्रकृति, सौंदर्य और मानवतावाद के महाकवि
हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों—महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’—के साथ सुमित्रानंदन पंत का नाम अत्यंत आदर और गरिमा से लिया जाता है। पंत जी को हिंदी का “प्रकृति-कवि” कहा जाता है, क्योंकि उनकी काव्य-यात्रा का सबसे उज्ज्वल आयाम प्रकृति की अनुपम छटा, सौंदर्य और उसकी मानवीय संवेदनाओं का गीतात्मक चित्रण है। उनकी कविताएँ सहज संगीतात्मक प्रवाह, कोमल भावनाओं और दार्शनिक गहराई से भरपूर हैं।
जन्म, बाल्यावस्था तथा संस्कार
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कौसानी नामक रमणीय स्थान पर हुआ। हिमालय की विराटता, सुरम्य पर्वत-शृंखलाएँ, बादलों का नर्तन और प्रकृति की अनंत शांति—इन सबने बचपन से ही उनके मन पर गहरा प्रभाव डाला। यही कारण है कि उनकी अधिकांश रचनाओं में प्रकृति का सौंदर्य एक जीवंत पात्र की तरह उपस्थित दिखाई देता है।
साहित्यिक व्यक्तित्व एवं छायावादी शैली
पंत जी छायावादी काव्यधारा के प्रमुख प्रतिनिधि हैं। उनकी कविता में—
1. गहन आत्मानुभूति
2. रहस्यवाद
3. संगीतात्मकता
4. कोमल कल्पना
5. प्रकृति और सौंदर्य का मनोहर मिश्रण
स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वे छायावाद के “सौंदर्य-वेदना” और “भावुक रुमानियत” के अत्यंत सशक्त कवि माने जाते हैं।
मुख्य काव्य-संग्रह
पंत जी ने अनेक कालजयी काव्य-संग्रह हिंदी साहित्य को दिए, जिनमें प्रमुख हैं—
1. पल्लव
2. गुंजन
3. युगांत
4. ग्रंथि
5. लोकायतन
6. चिदंबरा (जिसके लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला)
विशेष रूप से “पल्लव” उनकी प्रकृति-प्रेमी छवि का सुंदर और परिपक्व उदाहरण है।
मानवतावाद और प्रगतिशील चिंतन
यद्यपि शुरुआत में पंत जी की कविता प्रकृति और सौंदर्य तक सीमित लगती है, परंतु समय के साथ उनके विचारों में सामाजिक चेतना, मानवतावादी दृष्टि और प्रगतिशील विचारों का समावेश हुआ। वे मानते थे कि साहित्य केवल सौंदर्य का गीत नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने का माध्यम भी है। इसी विचार से प्रेरित होकर उन्होंने अपनी कविताओं में श्रम, न्याय, समानता और मानवता के स्वर को उभारा।
पुरस्कार और सम्मान
सुमित्रानंदन पंत को उनके विशिष्ट योगदान के लिए अनेक सम्मान प्राप्त हुए—
1. ज्ञानपीठ पुरस्कार (1968) – चिदंबरा काव्य-संग्रह के लिए
2. साहित्य अकादमी पुरस्कार
3. पद्मभूषण
4. हिंदी साहित्य सम्मेलन का सर्वोच्च सम्मान
इन पुरस्कारों ने उन्हें आधुनिक हिंदी कविता में एक शिखर-पुरुष के रूप में स्थापित किया।
भाषा और शैली की विशेषताएँ
पंत जी की भाषा अत्यंत कोमल, संगीतमय और कल्पनाशील है। उनकी शैली की प्रमुख विशेषताएँ—
1. प्रकृति का चित्रात्मक और संवेदी वर्णन
2. संस्कृतनिष्ठ, परंतु सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा
3. रूपक, उपमा, अनुप्रास आदि अलंकारों का मधुर प्रयोग
4. दार्शनिकता और मानवतावादी दृष्टि
उनकी कविता पाठक के मन में दृश्य, संगीत और भावना—तीनों का सामंजस्य रचती है।
अंतिम चरण और साहित्यिक विरासत
पंत जी का देहांत 28 दिसंबर 1977 को हुआ। वे भले ही शारीरिक रूप से अब हमारे बीच नहीं हैं, परंतु उनकी कविताएँ आज भी हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। नई पीढ़ी के कवियों और पाठकों को उनकी शैली, उनकी प्रकृति-दृष्टि और उनका मानव-मूल्यबोध निरंतर प्रेरित करता है।
प्रस्तुत है पल्लव काव्य संग्रह से उनकी एक रचना -
पल्लव (कविता) / सुमित्रानंदन पंत
अरे! ये पल्लव-बाल!
सजा सुमनों के सौरभ-हार
गूँथते वे उपहार;
अभी तो हैं ये नवल-प्रवाल,
नहीं छूटो तरु-डाल;
विश्व पर विस्मित-चितवन डाल,
हिलाते अधर-प्रवाल!
दिवस का इनमें रजत-प्रसार
उषा का स्वर्ण-सुहाग;
निशा का तुहिन-अश्रु-श्रृंगार,
साँझ का निःस्वन-राग;
नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार,
तरुणतम-सुन्दरता की आग!
कल्पना के ये विह्वल-बाल,
आँख के अश्रु, हृदय के हास;
वेदना के प्रदीप की ज्वाल,
प्रणय के ये मधुमास;
सुछबि के छायाबन की साँस
भर गई इनमें हाव, हुलास!
आज पल्लवित हुई है डाल,
झुकेगा कल गुंजित-मधुमास;
मुग्ध होंगे मधु से मधु-बाल,
सुरभि से अस्थिर मरुताकाश!
रचनाकाल: नवम्बर’ 1924
लेख द्वारा - रीना कुमारी प्रजापत [admin]


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