चंचल तितली की फ़ूल पर छाया।
भोली रंग बिरंगी मनमोहक काया।।
हरी भरी क्यारियाँ लुभा रही है मन।
मौका मिलते मक्खी ने मधु चुराया।।
फुदकना आता उसको लम्बी जीभ।
शिकार करना कुदरत ने सिखाया।।
छोटे छोटे पेड़ो पर बौराई डालियाँ।
आकर्षित होते ही मेरा मन बौराया।।
वहीं याद पुरानी क्या आई 'उपदेश'।
मखमली घास पर बैठते लेट गया।।
आसमान देखता कल्पनाशील मन।
खुदा की कारीगरी पर प्यार आया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद